ए खुदा तेरे करम की ,नजर किधर न हुई
कौन एसा है की जिस पर तेरी नजर न हुई
माना किस्मत में अँधेरा है मगर ये तो बता
क्या कोई शाम है जिसकी कोई सहर न हुई
वो भी क्या दिल है जो रोया न दुःख में औरो के
वो भी क्या आँख है जो आंसुओ से तर न हुई
अब मसीहा ही बचाए गे मुझे आ कर के
इस ज़माने की दवा कोई कारगर न हुई
इ खुदा तेरे करम की...............
कौन एसा है की जिस पर तेरी नजर न हुई
माना किस्मत में अँधेरा है मगर ये तो बता
क्या कोई शाम है जिसकी कोई सहर न हुई
वो भी क्या दिल है जो रोया न दुःख में औरो के
वो भी क्या आँख है जो आंसुओ से तर न हुई
अब मसीहा ही बचाए गे मुझे आ कर के
इस ज़माने की दवा कोई कारगर न हुई
इ खुदा तेरे करम की...............
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